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Lord Krishna Prasad - What is love
भगवान कृष्ण को भोग में क्या-क्या है पसंद
जन्माष्टमी के दिन कई स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। इस दिन दूध और दूध से बने व्यंजनों का सेवन किया जाता है। भगवान कृष्ण को दूध और मक्खन अति प्रिय था। अत: जन्माष्टमी के दिन मखाने की खीर, धनिया पंजीरी, माखन मिश्री, नारियल पाग जैसे मीठे व्यंजन बनाकर भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाता है। जन्माष्टमी का व्रत, मध्य रात्रि को श्रीकृष्ण भगवान के जन्म के पश्चात भगवान के प्रसाद को ग्रहण करने के साथ ही पूर्ण होता है।
1. धनिया पंजीरी
2. पंचामृत
3. माखन मिश्री
4. नारियल पाग
5. बादाम-केसर खीर
6. मखाने की खीर
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Fasting and worship of Krishna Janmashtami
कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत और पूजन
कृष्ण एक ऐसा अवतार जिसके दर्शन मात्र से प्राणियो के, घट घट के संताप, दु:ख, पाप मिट जाते है। जिन्होंने इस श्रृष्टि को गीता का उपदेश दे कर उसका कल्याण किया, जिसने अर्जुन को कर्म का सिद्धांत पढाया, यह उनका जन्मोत्सव है। हमारे वेदों में चार रात्रियों का विशेष महातव्य बताया गया है दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है, शिवरात्रि महारात्रि है,श्री कृष्ण जन्माष्टमी मोहरात्रि और होली अहोरात्रि है।
जिनके जन्म के संयोग मात्र से बंदी गृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, मां यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठी, उस भगवान श्री कृष्ण को सम्पूर्ण श्रृष्टि को मोह लेने वाला अवतार माना गया है। इसी कारण वश जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है।
जन्माष्टमी का व्रत को व्रतराज कहा गया है। इसके सविधि पालन से प्राणी अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य राशि प्राप्त कर सकते है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं।
भविष्य पुराण के जन्माष्टमी व्रत-माहात्म्य में यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराज के अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकर्ता भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं। दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है।
गृहस्थों को पूर्वोक्त द्वादशाक्षर मंत्र से दूसरे दिन प्रात: हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन भी लोगो को संतान न हो, वंश वृद्धि न हो, पितृ दोष से पीड़ित हो, जन्मकुंडली में कई सारे दुर्गुण, दुर्योग हो, शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाले को एक सुयोग्य,संस्कारी,दिव्य संतान की प्राप्ति होती है, कुंडली के सारे दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाते है और उनके पितरो को नारायण स्वयं अपने हाथो से जल दे के मुक्तिधाम प्रदान करते है। जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ निम्न किसी भी मंत्र का अधिकाधिक जप करें-
ऊॅ नमो नारायणाय
ऊॅ नमों भगवते वासुदेवाय
ऊॅ श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत: क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥
अथवा
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय
गोविन्द, गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय
उपर्युक्त मंत्र में से किसी का भी का जाप करते हुए सच्चिदानंदघन श्रीकृष्ण की आराधना करें। इससे परिवार में व कुटुंब में व्याप्त तनाव, समस्त प्रकार की समस्या, विषाद, विवाद और विघटन दूर होगा खुशियां घर में वापस लौट आएंगी। गौतमी तंत्र में यह निर्देश है- प्रकर्तव्योन भोक्तव्यं कदाचन। कृष्ण जन्मदिने यस्तु भुड्क्ते सतुनराधम:। निवसेन्नर केघोरे यावदाभूत सम्प्लवम्॥ अर्थात- अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें।
भगवान कृष्ण के व्रत-पूजन-
उपवास के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यकमरें से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें-
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए सूतिका गृह नियत करें।
तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो तो अति उत्तम है। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमश: निर्दिष्ट करना चाहिए। फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें--
प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामन:।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नम:।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।
अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्तन करें। जन्माष्टमी के दिन रात्रि जाग कर भगवान का स्मरण व स्तुति करें अगर नहीं तो कम से कम बारह बजे रात्रि तक कृष्ण जन्म के समय तक अवश्य जागरण करें। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं।
इस श्रीकृष्णस्तोत्र का पाठ पूजा के समय प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान श्रीकृष्ण अपने साधक पर नि:सन्देह प्रसन्न होते है। अभय को प्रदान करने वाला और सदैव प्रसन्नचित्त रखने में समर्थ यह स्तोत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
source- http://www.jagran.com/spiritual/religion-fasting-and-worship-of-krishna-janmashtami-10665983.html
Nine fifteen live in Mathura Thakur will be objects of mind
मथुरा में ठाकुर जी को सवा नौ मन का भोग लगाया जाएगा
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के लिए जन्मस्थान परिसर को परंपरागत ब्रज कला के माध्यम से अद्भुत सजाया जा रहा है। नयनाभिराम साज-सज्जा को देखकर श्रद्धालु अभिभूत हो उठेंगे। भव्यता की झिलमिलाहट में भक्तों की भावना की झलक होगी। इस मौके पर ठाकुरजी को रेशम एवं रत्न प्रतिकृति जड़े पीले रंग की पोशाक धारण कराई जाएगी।
इसमें रत्न एवं रेशम का उपयोग करते हुए फूल, पत्ती, बेल, पक्षी आदि की जड़ाई की गई है। ठाकुर जी को सवा नौ मन का भोग लगाया जाएगा।
जन्मस्थान के संपूर्ण बाहरी हिस्सों को ब्रज के सज्जाकार के साथ पश्चिम बंगाल के कारीगर अद्भूत विद्युत सजावट से प्रकाशित करने के लिए जुटे हैं। मंदिर के संपूर्ण शिखर, गुंबद, तिवारियों, खिड़कियों, झरोखों, द्वार, गलियारों को अत्यंत सुंदर एवं कलात्मकता से परिपूर्ण सज्जा से सुसज्जित किया जा रहा है। भीतरी भाग को ब्रज की परंपरागत शैली से सजाया जा रहा है। पत्र, पुष्प, वस्त्र आदि सामग्री का ब्रज की प्राचीन कला के अनुरूप प्रयोग कर मयूर- भुवन स्वरूप में दिव्य एवं अलौकिक छटा के बंगले में विराजमान होकर युगल सरकार भक्तों को दर्शन देंगे। बंगले के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली सामग्री को मणिरूप में प्रयुक्त किया जा रहा है। जो श्रद्धालुओं को प्राचीन पच्चीकारी, नक्काशी एवं रत्नजड़ित अद्भूत भवन का आभास कराएंगे।
ये होंगे मुख्य कार्यक्रम
28 अगस्त को सुबह दस बजे पुष्पाजंलि कार्यक्रम। रात्रि 11 बजे श्रीगणेश- नवग्रह आदि का पूजन शुरू। रात्रि 12 बजे भगवान का प्राकट्य एवं 12.10 तक आरती। रात्रि 12.15 से 12.30 तक महाभिषेक। जन्म के दर्शन रात्रि 1:30 बजे तक। 29 अगस्त को प्रात: 9 बजे नंदोत्सव।
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ममता से विह्वल यशोदा भूल गईं थीं छठ पूजन
मथुरा। वाह री, यशोदा की ममता। कान्हा की ममता में इतनी मग्न हुईं कि छठ पूजने की परंपरा भूल गईं। भला हो सबसे बुजुर्ग गोपी चंद्रावली की, जिसके ध्यान दिलाने पर लाला का छठ पूजन उनके जन्म लेने के 364वें दिन मां यशोदा ने किया।
घरों में शिशु के जन्म लेने के छठवें दिन छठ पूजने की परंपरा है। छठ पूजन के पश्चात संबंधित घर से सोबर समाप्त हो जाती है और इसके बाद जच्चा दैनिक कामकाज में जुट जाती है, लेकिन जगतपालक होने के बाद भी कन्हैया का छठ पूजन उनके पहले बर्थडे के एक दिन पहले यानि जन्म लेने के 364वें दिन हुआ था।
प्राचीन नंद किला मंदिर गोकुल के पुजारी नटवर जय भगवान बताते हैं, कान्हा के जन्म दिन के बाद यशोदा जी छठ पूजन की तैयारी में जुटी थीं कि इसी बीच राक्षसी पूतना गोकुल में कान्हा को मारने के उद्देश्य से आ धमकी। पूतना पूरे गोकुल में छह दिन के जितने भी शिशु मिले सबको मारने लगी। यह खबर मिलने के बाद मां यशोदा लाला को इस तरह दुबकाये-दुबकाये रहने लगीं कि लाला की भनक उनकी सखी-सहेलियों को भी नहीं लग पायी। वक्त गुजरने के साथ ही यशोदा जी छठ पूजन की बात भी भूल गयीं। कान्हा के जन्म दिन के एक साल पूर्ण होने के दो दिन पहले यशोदा जी ने गोकुल की सबसे बुजुर्ग गोपी चंद्रावली को बुलाया और लाला के जन्म दिन पर भोज का निमंत्रण सभी विप्रों को देने के लिये कहा। चालाक चंद्रावली ने कहा, यशोदा मैया लाला का छठ पूजन न होने की वजह से अभी तुम्हारे घर से सोबर नहीं निकली है। लिहाजा, विप्र कान्हा के जन्म दिन की खुशी में भोजन करने नहीं आएंगे। इस बुजुर्ग गोपी ने ही यशोदा जी को लाला के जन्म दिन के एक दिन पहले छठ पूजन करने का उपाय बताया। छठ पूजन के बाद कान्हा का पहला जन्म दिन मां यशोदा और नंद बाबा ने मनाया था।